प्रभु के प्रति हमारी निष्ठा सेवा के लिए हमारी तत्परता पर निर्भर है। इसके लिए कीमत चुकानी पड़ती हैै।
पोप फ्रांसिस, (ईसाई धर्म गुरु)
आजकल सेवा शब्द साधारण और घिसा-पिटा हुआ प्रतीत होता है, किन्तु यह बहुत महत्त्वपूर्ण एवं ठोस काम है। सेवा का अर्थ है येसु का अनुसरण करना, जिन्होंने थोड़े शब्दों में अपने जीवन का सार प्रस्तुत किया। वे सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने आए थे। अत: यदि हम येसु की सेवा करना चाहते हैं, तो हमें उसी मार्ग पर चलना पड़ेगा, जिस पर वे चले। यानी सेवा का मार्ग।
आत्म-दर्शन: ताकि प्यासा नहीं रहे कोई
प्रभु के प्रति हमारी निष्ठा सेवा के लिए हमारी तत्परता पर निर्भर है। इसके लिए कीमत चुकानी पड़ती हैै। जैसे-जैसे दूसरों के प्रति हमारी चिंता और उदारता बढ़ती है, हम अंदर से उतना ही येसु के समीप होते जाते हैं। हम जितना अधिक सेवा करते हैं, उतना ही अधिक ईश्वर की उपस्थिति का भी एहसास करते हैं।
आत्म-दर्शन: आज के हालातों में हर किसी को जिम्मेदारी समझने की जरूरत
आत्म-दर्शन : सेवा का मार्ग - Patrika News
Read More
No comments:
Post a Comment