संवाद सहयोगी, पीरटांड़ (गिरिडीह) : मधुबन में जैन मुनि पुण्य सागरजी महाराज की उपस्थिति में शुक्रवार को भव्य जैनेश्वरी आर्यिका दीक्षा समारोह हुआ। सम्मेद शिखर पारसनाथ के मध्यलोक शोध संस्थान परिसर में हुए समारोह में असम एवं महाराष्ट्र के तीन दीक्षार्थियों ने दीक्षा ग्रहण की। शुक्रवार सुबह से ही दीक्षा ग्रहण से पूर्व धार्मिक विधियां पूरी की जा रही थी।
बता दें कि इसके पहले कुछ दिन पूर्व पांच लोग यहां दीक्षा ग्रहण कर जैन साधु बन गए थे। इस मौके पर पूरा मधुबन जयकारों एवं वैदिक मंत्रोच्चार से गुंजायमान रहा। क्षा ग्रहण से पूर्व साधु संतों ने बताया कि जैन धर्म के अनुसार दीक्षा से पूर्व दीक्षार्थियों को जप, तप, त्याग और साधना के कठिन मार्ग को तय कर दीक्षा के दरवाजे तक पहुंचना पड़ता है। तब आचार्य गुरुदेव दीक्षा देते हैं। उन सभी मार्गों की लंबी यात्रा कर खुद को एक सफल दीक्षार्थी के रूप में गुरुदेव के समक्ष खड़ा कर तीनों दीक्षार्थियों ने मुनि के सानिध्य से आर्यिका दीक्षा का अनुरोध किया जिसे स्वीकृति प्रदान की गई।
भौतिक वातावरण की दुनिया को त्यागकर वे साध्वी के रास्ते चल पड़े हैं। मोक्षमार्ग की ओर चलनेवाली ब्रह्मचारिणी की जैनेश्वरी आर्यिका दीक्षा में देशभर से हजारों श्रद्धालु उपस्थित हुए। देर तक कार्यक्रम चलने के बाद दीक्षा का कार्य संपन्न हुआ। दीक्षा के बाद तीनों दीक्षार्थियों का नामकरण किया गया। सुशीला बाई गुवाहाटी असम की रहनेवाली हैं। उन्हें आर्यिका दीक्षा के बाद आर्यिका निर्णय मति माता जी का नामकरण किया गया। शकुंतला बाई शीला पथार असम की रहनेवाली हैं। उन्हें दीक्षा के बाद निश्चय मति माता का नामकरण किया गया। दीक्षा के बाद मुंबई की बबली देवी का नियममती माता का नामकरण हुआ।
Edited By: Jagran
साधना के कठिन मार्ग पर खुलता दीक्षा का द्वार - दैनिक जागरण
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