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- सहरसा जिला का 68 वां स्थापना दिवस आज
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जासं, सहरसा : आज सहरसा 68वां स्थापना दिवस मनाएगा। इतने लंबे अरसे के बाद भी यह भले यह बड़ा शहर नहीं बन सका हो, लेकिन रफ्ता- रफ्ता यह शहर जरूर बनता जा रहा है। रेल व सड़क मार्ग का लगातार विकास होता जा रहा है। इसके साथ-साथ व्यापार के क्षेत्र में भी शहर का विस्तार हो रहा है। चार नए नगर पंचायत, दो नगर परिषद के साथ ही शहरी सुविधाओं के बढ़ने की संभावना बनी है।
प्राकृतिक आपदाओं से त्रस्त यह जिला धार्मिक, पौराणिक ²ष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहा है। एक अप्रैल 1954 को भागलपुर से अलग होकर सहरसा जिला बना था। स्थापना के समय जिला के अन्तर्गत तीन अनुमंडल सहरसा सदर, मधेपुरा एवं सुपौल तथा 15 थाने थे। वर्ष 1965 में खगड़िया अनुमंडल के फरकिया परगना (सिमरीबख्तियारपुर व कोपरिया) को जोड़कर इस जिले के भूखंड को बढ़ाया गया। परंतु, विकास की संभावनाओं को तरजीह दिए जाने के कालक्रम में 09 मई 1981 को मधेपुरा तथा 14 मार्च 1991 को सुपौल को जिला बना दिया गया। इन साढ़े छह दशक के कार्यकाल में जिले का विकास भी हुआ, परंतु इसकी गति काफी कम रही। आजादी के इतने समय बाद भी जिले की बड़ी आबादी वर्ष में छह महीना बाढ़ की समस्या झेलती है। जिले के दस में पांच प्रखंड बाढ़ प्रभावित हैं तो शेष पांच में सुखाड़ की समस्या बनी रहती है। तटबंध के अंदर रहने वाले लोगों के सामने स्वास्थ्य, सड़क व रोजगार की समस्या है।
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नयी सड़कों से बदला-बदला सा होगा जिला
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कोसी नदी पर बलुआहा में साढ़े चार सौ करोड़ की लागत से महासेतु जिले के लिए नया सबेरा लेकर आया है। वहीं हरदी-चौघारा से माठा तक नयी सड़क इस जिले की महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी। आसाम से बिदुपुर (हाजीपुर) तक नयी सड़क प्रस्तावित है। इस सड़क मार्ग से राजधानी पटना और नजदीक हो जाएगा। इस प्रस्तावित सड़क मार्ग के निर्माण से तटबंध के अंदर के लोगों के लिए नया विकल्प खुल जाएगा। दूसरी ओर भेजा में कोसी नदी पर बन रहा एशिया का सबसे लंबा पुल बनने से कई विकल्प लोगों के पास हो जाएंगे। भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत बनने वाली सड़क परसरमा- बनगांव-महिषी होते हुए उच्चैठ भगवती स्थान से जुड़ेगी। इससे धार्मिक पर्यटन का एक मार्ग खुल जाएगा।
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खुले कई नए संस्थान
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भारती मंडन कृषि महाविद्यालय, आइटीआई, इंजीनियरिग कॉलेज जैसे कई उल्लेखनीय संस्थानों के खुलने से जिले के विकास की उम्मीद जगी है। वहीं स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई उपलब्धियां सामने है।
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रह गयी कसक
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ओवरब्रिज
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जिले का लंबा इतिहास व विकास देखकर थोड़ा संतोष भले हो लेकिन जब यहां के लोग गंगजला, शिवपुरी, पोलिटेक्निक व बंगाली बाजार जाते हैं तो विकास की सारी बातें बेमानी सी लगती है। अतिक्रमित सड़कें, बेतरतीब गाड़ियां व बंद रेल फाटक के कारण जाम में फंसे लोग यहां के राजनेताओं को कोसते हैं। हर चुनाव में बड़ा मुद्दा बनने वाला ओवरब्रिज आज तक नहीं बन सका।
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मेडिकल कॉलेज
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प्रमंडलीय मुख्यालय सहरसा में मेडिकल कॉलेज की स्थापना नहीं हुई। यहां एम्स को लेकर भी लोगों ने आंदोलन किया। जिला प्रशासन से सरकार को प्रस्ताव भी भेजा लेकिन अब यह दरभंगा में बनने जा रहा है। जिले का सदर अस्पताल कभी कोसी का पीएमसीएच हुआ करता था। सुपौल व मधेपुरा के मरीज भी यहां आते थे। आज यहां के निजी नर्सिंग होम में आसपास के जिले के मरीज आते हैं।
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बैजनाथपुर पेपर मिल
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बैजनाथपुर पेपर मिल से इस साल भी धुंआ नहीं निकला। जिला प्रशासन व उद्योग विभाग यहां नया उद्योग लगाने के लिए प्रयासरत है।
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रफ्ता-रफ्ता हो रहा है रेल और सड़क मार्ग का विकास - दैनिक जागरण
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